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'चैन नाम की चिड़िया' |
कहते हैं खाली दिमाग़ शैतान का घर होता है। इसलिए खाली बैठे-बैठे लोगों को मतलब-बेमतलब के ख्याल बहुत आते हैं।मल्लब ..विभिन्न प्रकार के विचार, तिकड़में, अधूरी इच्छाओं की कसक वगैरा-वगैरा के ख्याल! समस्याएँ भी आती हैं तो साथ में उनके समाधान भी आते हैं! ऐसे ही एक दिन जब मैंने 'चैन नाम की चिड़िया' को फिर से अपने जीवन के आँगन में चहचहाते हुए महसूस किया तो ख्याल आया कि आजकल ये कम ही आती है! कभी-कभी तो बहुत दिनों तक दिखाई ही नहीं देती! कहाँ उड़ जाती है ? क्या इसे किसी नेता की नज़र तो नहीं लग गयी? या फिर मुझसे ही तंग आकर यह कहीं फुर्र हो जाती है? और फिर अचानक से प्रकट हो जाती है! इसका य़ूँ लंबे समय तक गायब होना कतई अच्छा नहीं लगता! इसका आस-पास ही फुदकते रहना सही है! इसके गायब होने की क्या वजह हो सकती है? एक बात यह भी है कि क्या यह मेरे ही आँगन से छूट्टी मारती है या दूसरों के आँगन में भी ऐसी ही नागा करती है? अपने नेता से त्रस्त जनता के पास भी इतने सवाल नहीं होते जितने मेरे पास थे! लेकिन उत्तर का अभाव था! लिहाजा मैंने फौरन अपने दिमाग़ के निठल्ले पुर्जों को काम पर लगाया और आदेश दिया कि जल्द से जल्द इस 'चैन नाम की चिड़िया' के अचानक गायब और फिर से प्रकट होने का पता लगाओ! साथ ही पता लगाओ किन लोगों के आँगन में ये बिना गायब हुए चहचहाती है?
पुर्जे तुरंत काम पर लग गए और जल्द ही पता लगा लिया कि 'चैन नाम की चि़ड़िया' अक्सर मेरे आँगन में क्यों नहीं आती? पुर्जों के मुताबिक कोई भी चिड़िया वहीं पर जाएगी जहाँ उसे अपने अनुकूल वातावरण(बिना शोर-शराबे का) और दाना-पानी दिखाई दे! 'चैन नाम की चिड़िया' भी दाना-पानी खाती है क्या? मैंने पूछा! मेरे दिमाग के पुर्जों ने जवाब दिया, 'बिल्कुल खाती है'! चैन नाम की चिड़िया को 'सज्जनता नाम के कीड़े' बहुत पसंद है! 'तिकड़मी बिच्छूओं' से यह बहुत डरती है! ईश्वर भक्ति में लीन प्राणी इसे बहुत भाते हैं! और भक्ति भाव का वातावरण इसे बहुत अच्छा लगता है! 'चैन नाम की चि़ड़िया' को 'चालाक केकेड़ों' 'खुंखार साँपों' और 'लड़ाकू प्रजाति के जीवों' से सख्त एलर्जी है! उनसे इतनी बदबू आती है कि उनके पास भी नहीं फटकती! इसलिए यह वहां जाती ही नहीं! 'संतोष' और 'धैर्य' नाम के दो 'तोते' इसके पक्के दोस्त हैं! अक्सर यह साथ मिलते हैं! 'प्रेम और भाईचारे के रसगुल्लों' की तो यह दीवानी है जिस आँगन में भी ये मिल जाते हैं वहाँ से यह नहीं हिलती! 'मैं समझ गया' अपने 'दिमाग के पुर्जों 'से मैंने कहा! 'मुझे इतना ही पता लगाना था'! दरअसल मुझे अचानक यह लगने लगा था कि मेरे पुर्जें कहीं मेरी ही पोल न खो दें? मेरे 'दिमाग़ के पुर्जे' मुझसे यह न कह दें कि जब-तब तुम्हारें आँगन में 'खुरापाती मच्छर'( दूसरों को परेशान करने वाले) उत्पात मचाते रहते हैं,'तिकड़मी बिच्छू' खुले घूमते हैं! 'शोर-शराबा नाम का ततैया' अक्सर मंडराता रहता है! इसलिए चैन नाम की चिड़़िया तुम्हारे यहाँ से ऐसे ही गायब हो जाती है जैसे सूरज के सामने बादल आने से धूप गायब हो जाती है! अगर चैन नाम की चिड़िया की लगातार चहचहाट सुननी है, उसके फुदकने का आनंद लगातार लेना है तो अपने पहले अपने आँगन का वातावरण सुधारों और उसके पसंदीदा दाना-पानी की व्यवस्था करो। चैन नाम की प्यारी सी चिड़िया के लिए इतना तो किया ही जा सकता है! हाँ.. बस इतना सा! फिर ख्याल आया! कहने को ही बस इतना सा करना है लेकिन सोचो तो बहुत कुछ करना होता है! बहुत कुछ!
-वीरेंद्र सिंह
वीरेंद्र भाई, काश चैन नाम की चीडिया आपके आंगन में हमेशा फुदकती रहे।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (31-07-2022) को "सावन की तीज का त्यौहार" (चर्चा अंक--4507) पर भी होगी।
हटाएं--
कृपया लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय ज्योति जी आपका बहुत-बहुत आभार। सादर धन्यवाद।
हटाएंआदरणीय रूपचंद्र शास्त्री मयंक जी आपका कोटि-कोटि धन्यवाद। आपकी विनम्रता से अभिभूत हूँ।
हटाएंबस इतना सा करने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है ।👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंआदरणीय संगीता स्वरूप जी। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आपकी विनम्रता के लिए हार्दिक आभार। सादर।
हटाएंवाह।👌
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत धन्यवाद, शिवम जी। सादर।
हटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 01 अगस्त 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
आपका कोटि-कोटि आभार और धन्यवाद। आपकी इस विनम्रता से मैं अभिभूत हूँ।
हटाएंचैन नाम की चिड़िया आपके आँगन में अपने दाने-पानी और मित्रों के साथ सदा विराजमान रहे ।बहुत सुन्दर पोस्ट विरेंद्र सिंह जी ।
जवाब देंहटाएंशुभकामना भरी मूल्यवान टिप्पणी के लिए आपका बहुत-बहुत आभार। बहुत-बहुत धन्यवाद।
हटाएं'संतोष' और 'धैर्य' नाम के दो 'तोते' इसके पक्के दोस्त हैं! जी सही कहा आपने । उम्दा प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है! आपकी टिप्पणी बहुमूल्य है। इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
हटाएंप्रतीकों के माध्यम से "चैन नाम की चिड़िया का सजीव और सुंदर वर्णन किया है वीरेन्द्र जी ।बधाई ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत आभार। आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए महत्वपूर्ण है। आपका बहुत-बहुत आभार। सादर।
हटाएंचैन नाम की चिड़िया अपने चिड़िया स्वभाव के अनुरूप ही है..उड़ती फिरती है सारे जहाँ में इसलिए एक जगह नहीं टिकती।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी अभिव्यक्ति सर।
सादर।
स्वेता जी..बहुत-बहुत आभार। प्रेरित करते आपके शब्दों के लिए हार्दिक धन्यवाद।
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंइस चैन नाम की चिड़िया को आज के अस्थिर समय की कुटिल चाल बहुत दूर ले जाने को आतुर है।बाकी तो मन के हाथ है हर बात ।भीतर सन्तोष तो चैन की चिडिया कहीं ना जाने वाली।बहुत अच्छा लिखा है आपने वीरेंद्र जी।हार्दिक बधाई आपको 🙏
जवाब देंहटाएंलाख टके की बात आपने कह दी। मन के हाथ सब बात। सार्थक टिप्पणी के लिए आपका बहुत-बहुत आभार। सादर।
हटाएंचैन नाम की चिड़िया के लिए उसका अनुकूल वातावरण बनाना ही कौन चाहता है ।
जवाब देंहटाएंचैन से होंगे तो क्रेजी कैसे रहेंगे और फिर चाँद पर दुनिया कौन बसाएगा.... धरती का अमन चैन कैसे छीनेंगे ।
वैसे कमाल का लिखा है आपने दिमाग के निठल्ले कल पुर्जे !!!
वाह!!!
आदरणीय सुधा जी। आपने बिल्कुल सही कहा। सार्थक टिप्पणी के लिए आपका बहुत-बहुत आभार। सादर।
हटाएंअगर चैन नाम की चिड़िया की लगातार चहचहाट सुननी है, उसके फुदकने का आनंद लगातार लेना है तो अपने पहले अपने आँगन का वातावरण सुधारों और उसके पसंदीदा दाना-पानी की व्यवस्था करो। चैन नाम की प्यारी सी चिड़िया के लिए इतना तो किया ही जा सकता है!
जवाब देंहटाएं...बहुत सही बात ..
आदरणीय कविता जी आपका बहुत-बहुत आभार। सादर।
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