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सांकेतिक चित्र |
हर रंग मेरे महबूब का मुझे क़ुबूल है।
ख़ता कोई भी तुमसे हो नहीं सकती,
दामन पे तेरे दाग़ ज़माने की भूल है।
धरती पे न होगी तेरे हुस्न की मिसाल,
जन्नत की हूर भी तेरे पैरों की धूल है।
देखे तुम्हें ये चांद इजाज़त नहीं उसे,
है तेरी सुगंध मेरी बस तू मेरा फूल है।
ये वादा है इशारों पे तेरे जान भी देंगे
तोड़े नहीं वादा कभी अपना उसूल है।
-वीरेंद्र सिंह
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आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 22 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद। बहुत दिनों बाद आपका कॉमेंट मेरे ब्लॉग पोस्ट पर दिखाई दिया है। इसके लिए भी आपका आभार। सादर।
जवाब देंहटाएंअद्भुत 👏👏👏
जवाब देंहटाएंपढ़ते ही श्रृंगार रस की साक्षात अनुभूति।
निश्चय ही पाठक ऐसी रसमय रचनाओं के आस में उत्कंठित होते हैं होते हैं जिसमें मैं भी एक हूँ।
बधाई एवं आशीष शुभकामनाएं।
सादर।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। उम्मीद है आपको यह रचना पसंद आई होगी।
हटाएंअति सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंआभार सर। आगे भी आते रहिएगा।
हटाएंदेखे तुम्हें ये चांद इजाज़त नहीं उसे,
जवाब देंहटाएंहै तेरी सुगंध मेरी बस तू मेरा फूल है!!
किसी विशेष के लिए गहन अनुराग की अनुभूति कराती बहुत सरस, मधुर रचना!! हार्दिक शुभकामनाएं वीरेंद्र जी🙏🙏
टिप्पणी के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
हटाएंबहुत सुंदर छंदो से सुशोभित लाजवाब रचना..
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत आभार।
हटाएंइन्तहां !!
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा।
कुसुम जी धन्यवाद।
हटाएंबहुत खूब !! अत्यंत सुन्दर और भावपूर्ण सृजन ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मीना जी। आपका बहुत-बहुत आभार।
हटाएंउम्दा अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत आभार सर जी।
हटाएंवाह। बेहतरीन👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शिवम जी।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका ब्लॉग पर। आगे भी आते रहिएगा।
हटाएं'हर रंग मेरे महबूब का मुझे क़ुबूल है' । बहुत ख़ूब वीरेंद्र जी ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जितेन्द्र जी। आपका बहुत-बहुत आभार।
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआलोक जी धन्यवाद।
हटाएंधन्यवाद सर जी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद पायल। आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।
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