----कोरोना ने अपने स्ट्रेन इंग्लैंड में लॉन्च किए हैं। वो जानता है कि बाकी दुनिया में इसे फैलाने का काम इंसान स्वयं कर ऐसे ही कर लेगा जैसे पहले वाले स्ट्रेन को फैलाने में किया था। वजह यह है कि कोरोना ने दुनिया में कदम रखने से पहले ही इंसान की कमज़ोरियों और सीमाओं का विस्तृत अध्ययन कर लिया था। मसलन कोरोना को रोकने का काम डॉक्टर तभी कर सकते हैं जब लोग उनकी बात माने वगैरा-वगैरा....
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कोरोना वायरस का नाम सुनते ही डर नाम का ऑक्टोपस इंसान को अपने बस में कर लेता है। पास खड़े व्यक्ति को अगर छींक भी आ जाए तो बाकी लोग सेकेंड भर में रफा-दफा हो जाते हैं। हल्का-फुल्का बुखार, खांसी या गले में थोड़ी भी खराश होने पर कोरोना का भय ब्लड प्रेशर बढ़ा देता है। और फिर ऐसा हो भी क्यों न? दुनिया की बैंड बजाकर रख दी है इस मुए कोरोना ने। जीना हराम कर रखा है। बड़ा शातिर और चालाक है यह कोरोना! इसकी फितरत एकदम चीन जैसी है। इतना बेशर्म कि सारी दुनिया के विकास के पहिए पर तो रोक लगा दी लेकिन अपनी तरक्की में दिन-रात लगा रहा। साल भर पहले जो स्ट्रेन था उस पर काबू पाया जाने लगा तो पट्ठे ने हाल ही में अपने और भी ज्यादा ख़तरनाक़ दो-दो स्ट्रेन लॉन्च किए हैं। जी हां.. इन्हें इंग्लैंड में लॉन्च किया गया है। ये स्ट्रेन पहले की मुकाबले कई गुना संक्रामक हैं यानी पहले से ज़्यादा तेज़ी से फैलते हैं। इसलिए दिल बैठना बनता है। हम तो पहले वाले स्ट्रेन से भी कोसों दूर रहें। उससे हाथ मिलाना तो दूर जिस गली इसकी आमद हुई, छह महीने तक उस गली से न गुजरे। घर में भी मुंह पर मुचका (मास्क) बांधकर छिपे रहे। घर में झांड़ू लगाना और कपड़े धोना मंज़ूर था लेकिन घर से बाहर के विचार मात्र पर बुखार आने लगता था।
लेकिन ज़िंदगी है साब। जीना तो पड़ेगा। घर बैठकर भी काम नहीं चलने वाला। ज़िंदगी एक रास्ता है। थम गए तो कुछ नहीं। इसलिए घर से निकलना तो पड़ेगा। इसके अलावा कोई और चारा है नहीं! कोरोना यह अच्छे से जानता है इसलिए उसने अपने स्ट्रेन इंग्लैंड में लॉन्च किए हैं। वो जानता है कि बाकी दुनिया में इसे फैलाने का काम इंसान स्वयं कर ऐसे ही कर लेगा जैसे पहले वाले स्ट्रेन को फैलाने में किया था। वजह यह है कि कोरोना ने दुनिया में कदम रखने से पहले ही इंसान की कमज़ोरियों और सीमाओं का विस्तृत अध्ययन कर लिया था। मसलन कोरोना को रोकने का काम डॉक्टर तभी कर सकते हैं जब लोग उनकी बात माने। लेकिन वाह रे इंसान की फितरत ! इंसान तो भगवान की बात नहीं मानता! डॉक्टर तो छोड़ ही दें। लोगों के इस गुण को देखकर तो कोरोनी की आंखों में खुशी के आंसू आ गए थे। कोरोना को लगा कि जहां मेरे ऐसे शुभचिंतक हो वहां मैं न रहूं! य़ह नहीं हो सकता। बस फिर क्या था? कर ली तैयारी! और बोल दिया धावा। कोरोना ने जैसा अपने शोध में पाया था। लोग वैसे ही निकले। सारी परिस्थितियां अपने अनुकूल पायीं। परिणाम भी उम्मीद के मुताबिक ही आया। आज दुनिया जहां पैदल चल रही है तो कोरोना सरपट दौड़ रहा है! दुनिया ने जहां बहुत कुछ खोया है तो कोरोना ने बहुत कुछ पाया है। लेटेस्ट खबरों के मुताबिक कोरोना दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है।
वीरेंद्र सिंह
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बिल्कुल सही 👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद पांडे जी। आगे भी आते रहिएगा।
हटाएंबढ़िया आलेख। सादर।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विश्वमोहन जी। आगे भी आते रहिएगा।
हटाएंसुंदर आलेख। सादर।
जवाब देंहटाएंसधु जी धन्यवाद। सादर।
हटाएंएक कम था जो दूसरा स्ट्रेन आ टपका
जवाब देंहटाएंआफत के घर मुसीबत का डेरा
धन्यवाद कविता जी। अब आना जारी रखिएगा।
हटाएंक्या बात है! बढ़िया आलेख
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गगन जी। आगे भी आते रहिएगा।
हटाएंकुछ लोग जान की कीमत पर भी नहीं सुधारना चाहते। उसका कोई इलाज नहीं है। विचारणीय आलेख।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्योति जी। सादर।
हटाएंसुंदर समसामयिक, ज्ञानवर्धक लेख..शुभकामना सहित जिज्ञासा..।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जिज्ञासा जी। सादर।
हटाएंसही बात है जो भगवान की बात नहीं मानते वो डॉक्टर्स की बात क्या मानेंगे.... अब नया स्ट्रेन......तो फिर ताली थाली या मोमबत्ती.......
जवाब देंहटाएंसुन्दर आलेख।
सुधा जी धन्यवाद। सादर।
हटाएंबढ़िया आलेख
जवाब देंहटाएंसंजय जी धन्यवाद। एक बार फिर से आप को ब्लॉग जगत में सक्रिय देखकर अच्छा लग रहा है।
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